moneythoughtsandlife : ZINDGI

Sunday, 4 January 2015

ZINDGI

आहिस्ता चल ज़िन्दगी, अभी कई क़र्ज़
चुकाना बाकी है,
कुछ दर्द मिटाना बाकी है, कुछ फ़र्ज़
निभाना बाकी है;
रफ्तार में तेरे चलने से कुछ रूठ गए, कुछ छुट गए 
रूठों को मनाना बाकी है,
रोतो को हसाना बाकी है ;
कुछ हसरतें अभी अधूरी है, कुछ काम
भी और ज़रूरी है ;
ख्वाइशें जो घुट गयी इस दिल में,
उनको दफनाना अभी बाकी है ;
कुछ रिश्ते बनके टूट गए, कुछ जुड़ते जुड़ते छूट गए;
उन टूटे-छूटे रिश्तों के ज़ख्मों को मिटाना बाकी है ;
तू आगे चल में आता हु, क्या छोड़ तुजे जी पाऊंगा ?
इन साँसों पर हक है जिनका ,
उनको समझाना बाकी है ;
आहिस्ता चल जिंदगी , अभी कई क़र्ज़
चुकाना बाकी है !
Take care

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